संदेश

नवंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देश में बदलाव के लिए छह सुझाव

1991 के बाद बनी अर्थव्यवस्था बड़ी पूँजी की फूँक से फुलाई हुई अर्थव्यवस्था है। किसी भी अर्थव्यवस्था की जाँच का वास्तविक तरीका उसके सबसे गरीब लोग होते हैं। लेकिन इस फुलाई हुई अर्थव्यवस्था ने सिद्धांततः गरीबी को अप्रासंगिक और व्यवहारतः उसे ज्यादा दयनीय बनाया है। सबसे गरीब आदमी फटीचर यूनीफॉर्म पहने दफ्तरों और सोसाइटियों के बाहर गार्डगीरी करता दिखता है और दिन के बारह घंटे नौकरी में गिरवी रखने के बाद उतना गरीब मालूम नहीं देता ; जबकि उसकी जिंदगी पहले की तुलना में बहुत कम उसकी अपनी है। भौतिक रूप से पुराने फुटपाथ के दिनों से उसकी हालत जितनी बेहतर हुई है उसकी तुलना में ऊपर वाले लोगों की हालत उनकी वर्गीय हस्तियों के हिसाब से कई-कई गुना ज्यादा बेहतर होती गई है—इसलिए अंततः उसकी स्थिति ज्यादा हीन ही हुई है। इसे संक्षेप में कहें तो वैश्वीकरण का फायदा उठाकर भारतीय राज्य-व्यवस्था ने यहाँ की प्रिय सामाजिक प्रवृत्ति ‘ हाइरारकी ’ (ऊँच-नीच) को एक आर्थिक दिशा देकर उच्चतम अवस्था में पहुँचा दिया है। ऐसा विश्वपूँजी को छुट्टा छोड़ने और अपने तईं मुद्रास्फीति को बढ़ावा देने से हुआ है। विश्व पूँजी ‘ गैरजरूरी ’

सियारों की छवियाँ

एक गांव में एक बूढ़ा आदमी अपनी बुढ़िया के साथ रहता था। दोनों खेत में बीज बोने गए , तभी उन्हें दो चालाक सियार मिले। एक सियार ने उनसे कहा कि उसने काफी कृषि विज्ञान पढ़ रखा है और अगर उन्हें अच्छी फसल चाहिए तो उन्हें बीज को उबाल कर बोना चाहिए। बूढ़े ने ऐसा ही किया। उधर रात को दोनों सियार अपने साथियों के साथ आए और सबने खेत पर उबले हुए बीजों की जमकर दावत उड़ाई। सुबह बूढ़े दंपती को जब हकीकत मालूम हुई तो सियारों को सबक सिखाने के लिए उन्होंने भी एक चाल चली। बुढ़िया जोर-जोर से रोने लगी कि बूढ़ा मर गया है। आवाज सुनकर सब सियार वहां जमा हो गए। और तब बूढ़े ने अपनी लाठी से जमकर उनकी पिटाई की। आखिरकार परस्पर बदले की इस भावना को समाप्त करने का एक रास्ता निकलता है।   यह कहानी है उत्तरी त्रिपुरा के धर्मनगर के ' कथा चित्र ' ग्रुप की प्रस्तुति ' चुप कथा ना ' की , जिसका मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा आयोजित उत्तरपूर्वी राज्यों की बाल प्रस्तुतियों के समारोह के अंतर्गत श्रीराम सेंटर में सोमवार 20 दिसंबर को किया गया। करीब एक घंटे की इस प्रस्तुति में मंच पर सात-आठ साल से 14-15 साल