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शाहिद अनवर

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शाहिद अनवर भावुक और दूसरों की फिक्र करने वाले इंसान थे। यूँ वे चीजों को सैद्धांतिक ढंग से देखते थे, लेकिन उनका मन हमेशा ऐसे कथानकों से प्रभावित होता, जिनमें एक भावुक दुस्साहस होता। उनके लिखे या उनके चुने हुए नाटकों के पात्र ऐसी बेचैनी से भरे होते जो अपनी एकांतिकता में प्रायः एक रोमांटिक शक्ल ले लेती। इस बेचैनी का कोई निराकरण नहीं था। शाहिद भी एक ऐसे ही बेचैन रोमांटिक थे। वे बहुधा अन्य लोगों की तरह जमाने की ज्यादतियों से कतराने वालों में नहीं थे, बल्कि निरंतर इनसे मुठभेड़ में रहते। उन्होंने अपने आसपास युवाओं, रचनाकर्मियों, कलाकर्मियों की एक ऐसी छोटी-सी दुनिया आबाद कर ली थी जहाँ से उन्हें इस निरंतर चलने वाली मुठभेड़ के लिए ऊर्जा मिलती थी और जिसकी समस्याएँ सुलझाने में उनका बहुत समय भी खर्च होता। थिएटर ग्रुप ‘ बहुरूप ’ की सक्रियता और इधर के अरसे में बहुत समय लेने लग गई नौकरी ने उन्हें इस कदर मसरूफ कर दिया था कि जब भी मिलते तो कुछ अन्यमनस्क और भागने की हड़बड़ी में। उनके जैसे अरमानों से भरे व्यक्ति को इस रूप में देखना मन को उदास करता था। शाहिद अपने स्वभाव और अपनी रौ में जीने वाले इंसान