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दिसंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ढाई साल का युग

राजेन्द्र जी से मेरा साथ उनकी 84 बरस की उम्र के अंतिम ढाई सालों में रहा. इन ढाई में से बाद वाले एक-डेढ़ साल में हमारी अच्छी घनिष्ठता हो गई थी. यानी वह खुलापन और भरोसा आ गया था कि हम आपस में दुनियाभर के संदर्भों पर बेलाग हो सकें. राजेन्द्र जी खुलेपन के बगैर नहीं रह सकते थे, और बढ़ती उम्र और शारीरिक असमर्थताओं ने उनके भरोसे की एक भावनात्मक परिधि बना दी थी. इस परिधि में बहुत से लोग अपनी-अपनी वजहों से घुसना चाहते थे, पर जिसपर वस्तुतः दो एक लोगों का ही ठोस ढंग से कब्जा था. राजेन्द्रजी इन घुसने वालों और कब्जा बनाए रखने वालों के रोमांचक खेल में अंपायरिंग करते हुए लगभग हमेशा ही गलत फैसले लिया करते थे. ऐसा वे जानबूझकर नहीं करते थे, बल्कि ये गलत फैसले उनमें ‘ इनहेरेंट ’ थे. उनमें उलझावों में जीवन गुजारने की एक अदभुत क्षमता थी. इस तरह वे विपत्तियों से घबराए बगैर निरंतर सक्रिय बने रहते थे. इस लिहाज से यह उपयुक्त ही था कि मैं भावनात्मक के बजाय उनके ज्ञानात्मक भरोसे की परिधि में ही कहीं रहता था. वैसे जहाँ तक भरोसे की बात है, तो राजेन्द्रजी के साथ जीवन का लंबा समय गुजार चुके बहुत से लोग खुद उन्हें

उसूलों वाले रंजीत कपूर

महफिल सज चुकी है। गिलासें शराब डाले जाने का इंतजार कर रही हैं। रंजीत जी बिस्तर पर तकिया का टेक लिए बैठे हैं। अभी कुछ देर पहले गेस्ट हाउस में उनके कमरे में पहुँचे हम प्रायः एक श्रोता की भूमिका में हैं। वे बताते हैं कि उन्होंने अब दिल्ली में ही रहने का तय कर लिया है, और सिनेमा छोड़कर अब वे पूरी तरह थिएटर ही करेंगे। सिनेमा में बहुत सी प्रसिद्ध और सफल फिल्मों के पटकथा-लेखक होने और बतौर निर्देशक  ‘ चिंटूजी ’  बनाने के बाद उनका मन अब वहाँ नहीं लग रहा। सिनेमा की भीड़ में इतने साल खर्च करने के बाद भी कुछ है जो उन्हें रास नहीं आया। थोड़ा भावातिरेक में वे कहते हैं- थिएटर में मुझे इतना प्यार मिला है, इसलिए मैं अब पूरी तरह इसी में वापसी कर रहा हूँ। यही मेरी अपनी जगह है। मुझे याद आता है कि करीब साल भर पहले जब उन्हें संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार मिला था, जो कि उन्हें बहुत पहले मिल जाना चाहिए था, तो उन्होंने फोन पर पूछा था कि क्या उन्हें यह पुरस्कार लेना चाहिए, तो मैंने पुरस्कार की रकम जानने के बाद कहा था कि उन्हें यह ले लेना चाहिए। जानने वाले जानते हैं कि रंजीत कपूर के खाते में न वाजिब पुरस्कार हैं