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अपने जैसे अजनबियों में

युवा रंगकर्मी हैप्पी रंजीत के लिखे और निर्देशित किए नाटक  ‘ फैमिलियर   स्ट्रेंजर ’  का पुरुष  अपनी लिवइन पार्टनर से संबंध को प्यार के बजाय  ‘ ग्रेट फ्रेंडशिप ’  कहता है । फिर एक रोज वह अपनी फिल्म में काम कर रही हीरोइन यानी एक अन्य स्त्री से पूछता है- तुम मेरे होने वाले बच्चे की मां बनोगी ?  उसके मुताबिक हर इंसान, जानवर, पेड़-पौधे की लाइफ का एक ही मकसद होता है- प्रोक्रिएशन। वह कहता है- मेरे लिए कुछ भी सही और गलत नहीं....एक रिश्ते के होते हुए अगर मेरे मन में तुम्हारे लिए अट्रैक्शन आ गया है तो यह भी गलत है, पर यह तो हो गया है। इस पुरुष को हर आदर्श चीज से नफरत होती है,  ‘ क्योंकि वो झूठ है और मुझे सच्चाई से प्यार है ’ । उसका मानना है कि कोई रिश्ता जब तक काम कर रहा है तब तक ठीक, वरना उससे अलग हो जाना चाहिए। इसमें अच्छे-बुरे का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि जो मेरे लिए अच्छा है वह शायद दूसरे के नजरिए से बुरा हो। वह एक मुकम्मल आजादी का कायल है, जो तभी मिलती है जब आप किसी से जुड़े नहीं होते। ऐसी आजादी होगी तभी आप समाज के लिए कुछ कर पाएँगे.  उसे एक अपने जैसी स्त्री नूरा मिलती है जो एक प्रसिद्ध ले