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दोहराव और रूपांतरण

शायद सरकारी धन पर निर्भरता के कारण या जिस भी वजह से हिंदी रंगमंच का परिदृश्य कई बार एक रस्मी कवायद जैसा लगता है। वही पुराने नाटक बार-बार खेले जाते हैं, जिनके निर्देशकीय में निर्देशकगण बताते हैं कि कैसे यह फलां नाटक आज के यथार्थ के लिए भी उतना ही समीचीन है। इस दोहराव के अलावा हिंदी रंगमंच का दूसरा प्रतिनिधि तत्त्व  ‘ रूपांतरण ’  है। कोई किसी कहानी का रूपांतरण कर रहा है, कोई उपन्यास का, कोई किसी पुराने नाटक का ही। पिछले दिनों देखी कुछ प्रस्तुतियां भी इसी सिलसिले में थीं।  खूबसूरत बला  :    राधेश्याम कथावाचक लिखित इस पारसी नाटक का यह ताजा संस्करण मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के सौजन्य से था। भोपाल के रवींद्र भवन में हेमा सिंह के निर्देशन में यह वहाँ के छात्रों की प्रस्तुति थी। संयोग से इसी नाटक की अतीत में देखी दो अन्य प्रस्तुतियाँ भी हेमा सिंह के निर्देशन में अलग-अलग छात्र समूहों की ही थीं। इस नाटक के कुल गठन में संप्रेषण की कोई बुनियादी खामी है। नाटक में कथानक का कोई ठोस याकि समेकित प्रभाव नहीं बन पाता ;  और अंत में सिवाय शम्सा के चरित्र के कुछ भी याद नहीं रह जाता। शम्सा एक नायाब किरद