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चित्रलेखा : पाप और पुण्य की खुर्दबीनी

यूं तो वेदव्यास सदियों पहले परपीड़ा को सबसे बड़ा पाप बता चुके हैं, पर पाप और पुण्य की नए सिरे से छानबीन के लिए भगवतीचरण वर्मा ने पिछली शताब्दी के पूर्वार्ध में एक उपन्यास  ‘ चित्रलेखा ’ लिखा। पिछले दिनों सुरेंद्र शर्मा निर्देशित इस उपन्यास की प्रस्तुति देखते हुए उसका कृत्रिम ढांचा थोड़ी देर में कोफ्त पैदा करने लगता है। यह आख्यान में सिद्धांत का एक बनावटी प्रक्षेपण है, जिसमें भगवतीचरण वर्मा योग और भोग के परस्पर विरोधी ध्रुवों की टहल करते हुए अंततः इस ठेठ नियतिवादी और दुनियादार निष्कर्ष तक पहुंचते हैं कि  ‘ मनुष्य अपनी परिस्थितियों का दास होता है, कि   संसार में पाप कुछ भी नहीं है ,  कि  यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है ; कि हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं,     हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है। ’ भारतीय मानस के प्रबल शुद्धतावाद की मुक्ति हीनयान-महायानी किस्म की अतियों के बगैर संभव नहीं। यह उपन्यास उसी सनातन भारतीय पद्धति का एक छिद्रान्वेषी और बेडौल नैरेटिव है जहां जीवन के उलझेपन का ग्राफिकल समाधान खोजने की कोशिश में उसे कुछ और उलझा दिया जाता है। अपन

रंगकर्मी प्रसन्ना के विचार

सुपरिचित नाट्य निर्देशक प्रसन्ना अपने वैचारिक आग्रहों को लेकर अक्सर चर्चा में रहे हैं। वे एक कलाकार को किसान की तुलना में कहीं भी विशेष नहीं मानते हैं। वे मातृ भाषाओं में और जीवन की प्रकृत योग्यताओं के आधार पर रंगकर्म के हिमायती रहे हैं। नटरंग प्रतिष्ठान के आयोजन ‘ रंग संवाद ’  में उन्होंने अपनी वैचारिकता के विभिन्न पक्षों की सिलसिलेवार चर्चा की। उन्होंने बताया कि 24 साल पहले मैं दिल्ली छोड़कर गांव चला गया था। मैं दिल्ली से परेशान था, यहां के थिएटर से परेशान था। कर्नाटक के अपने गांव हेग्गोडू में जाकर धीरे-धीरे मुझमें शांति और स्थिरता आई। गांव जाकर प्रसन्ना ने एक सहकारी संस्था चरखा की स्थापना की और दो पुस्तकें लिखीं। पहली पुस्तक थी  ‘ देसी जीवन पद्धति ’  और दूसरी के नाम का अर्थ था- आओ मशीन को विखंडित करें। उनकी संस्था ने हथकरघा के क्षेत्र में काम शुरू किया और आज 600 लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में इससे जुड़े हैं। उनका कहना था कि मैं थिएटर को मशीन निर्मित मनोरंजन के विरोध के उपक्रम के रूप में देखता हूं। यह ऐसा माध्यम है जिसमें संप्रेषण मानवीय विधियों से होता है। लेकिन हमने  ‘ करने वाल