पेंटिंग के जैसा दृश्य


विभूतिनारायण राय के उपन्यास प्रेम की भूतकथा का कथानक एक पहाड़ी परिवेश के अतीत और वर्तमान में मिले-जुले तौर पर आकार लेता है। उपन्यास पर दिनेश खन्ना निर्देशित इसी शीर्षक प्रस्तुति में मंच सज्जा पर काफी काम किया गया है। यह एक पहाड़ी शहर का नजदीकी लैंडस्केप हैजिसमें ऊंचाई-नीचाई पर बने ढलवां छतों वाले घरउनके रोशनदानों और खिड़कियों से छनकर आती रोशनीकतार में खड़े पेड़कभी-कभी हल्की धुंध वगैरह का मंजर काफी ठीक से बनाया गया है। मंच पर प्रायः हल्की नीली रोशनी हैजिसमें पुराने ढंग की पोशाकों में पात्र अपने नॉस्टैल्जिया में एक रूमान बनाते हैं। कथानक का सूत्रधार सन 1909 में मसूरी में हुई एक हत्या के रहस्य को सुलझाने की कोशिश में उसके मृत पात्रों से बात करता है। इस तरह एक प्रेमउसकी वर्जना और इस वजह से जन्म लेने वाली हिंसा और सस्पेंस को दिखाने की कोशिश की गई है। ऊपन्यास कुछ इस मुहावरे का मालूम देता है जिसमें यथार्थ पर आभासीपन का वर्क चढ़ा हुआ है। धीरे-धीरे इस वर्क को हटाने में कहानी और उसका माहौल निकलकर आते हैं।
लेकिन जैसा कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़े लोगों के बीच एक दस्तूर है कि वे थिएटर का सारा काम डिजाइन से ही निकालना चाहते हैंवैसा ही यहां पर भी है। अपनी प्रस्तुति में दिनेश खन्ना दृश्य को पेंटिंग में बदलते नजर आते हैं। यहां तक कि एक स्थिति में नायिका अपने पामेरियन के साथ काफी देर तक मंच पर टहलती नजर आती है। ऐसा लगता है कि इस पेंटिंग की नोक-पलक सुधारने में दिनेश इस कदर व्यस्त रहे हैं कि चरित्रांकन का काम उन्होंने खुद अभिनेताओं पर छोड़ दिया है। लिहाजा उनके सारे अभिनेता चीख-चीख कर इस रटे हुए ढंग से अपने संवाद बोलते हैं कि इतनी मेहनत से बनाए गए माहौल की कोई लय बनने ही नहीं बनने पाती। सूत्रधार की भूमिका में टीकम जोशी हिंदी थिएटर के सबसे व्यस्त अभिनेताओं में हैं। उनकी अभिव्यक्ति में सबसे अहम चीज उनकी ऊर्जा होती है। ज्यादा बारीकी की शायद उनके पास मोहलत ही नहीं होती। यहां भी ऐसा ही है। टीकम जोशी के अलावा फादर कैमिलस बने जीतू शास्त्री भी इसी राह पर चलते दिखते हैं। दिनेश खन्ना ने अपनी ओर से स्थितियों को पूरा गहन बनाने की चेष्टा की है। एलन और रिप्ली के प्रेम प्रसंगों में या कैप्टेन यंग द्वारा एलन पर आजमाई जाने वाली थर्ड डिग्री में। लेकिन यह गहनता वास्तव में नहीं बन पाती, क्योंकि दिनेश उसके असल तंतु के बजाय बाहरी साधनों या अकादमिक किस्म की युक्तियों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। पाठ यहां आत्मसात नहीं किया गया है। वह एक ऊपरी संरचना है, एक निर्मिति। अभिनय, चरित्रांकन और वह दृष्टि जो विषयवस्तु और भाववस्तु को ठोस ढंग से एकीकृत करती है, यहां उतनी सुदृढ़ नहीं दिखती। पाठ की योजना में न वह स्पष्टता है न वह तल्लीनता। इसके बजाय हर पात्र कुछ अतिरिक्त ढंग से नाटकीय होने या सायास ढंग से दर्शकों से मुखातिब होने की कोशिश में दिखाई देता है। हालांकि नाटकीयता के कई बेहतर अंश भी प्रस्तुति में हैं। कैप्टेन यंग की भूमिका में शाहिद उर रहमान इस लिहाज से कहीं बेहतर है। एक दृश्य में एलन पर उसका अत्याचार एक बेहतर युक्ति में सामने आता है, जब दोनों सिर्फ अत्याचार करने और अत्याचारित होने का एक्शन करते हैं। प्रस्तुति की प्रकाश योजना भी ठीकठाक सुरुचिपूर्ण है। निश्चित ही आलेख और चरित्रांकन पर थोड़ा और काम किए जाने से यह एक ज्यादा बड़ी और भव्य प्रस्तुति बन सकती है।

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