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प्रयोग और प्रगतिशीलता

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों की डिप्लोमा प्रस्तुतियों में प्रयोगशीलता अक्सर सौंदर्य प्रसाधनों की तरह होती है, जिससे प्रस्तुति को सजाया-संवारा जाता है। बीते दिनों विद्यालय परिसर में हुई कर्नाटक की सहाना पी निर्देशित प्रस्तुति 'जन्नत महल' इस लिहाज से दिलचस्प थी। इसका मंचन तीन ओर कॉरिडोर से घिरे एक चौकोर लॉन में किया गया। कॉरिडोर में बैठे दर्शकों और मंच के बीच एक पारदर्शी पन्नी या मोमजामा था, जो आधी प्रस्तुति के बाद हटा दिया गया। मोमजामे के दूसरी ओर नाटक की नायिका जुलेखा की दुनिया का जिक्र कुछ यूं था कि पहले ही दृश्य में वह मंच के एक छोर पर खड़े पेड़ से कूदती है। उसका पति मरा पड़ा है, पर वह प्रफुल्लित स्वर में गमगीन लोगों से जामुन और बादाम खाने के बारे में पूछती है। लोग कहते हैं 'कैसे चहक रही है, क्या इसे जहन्नुम का भी खौफ नहीं' या यह कि 'शायद शौहर की मौत के सदमे में यह ऐसी हो गई है'। मंच के बीचोबीच कफन से ढका मरा पड़ा पति बीच-बीच में उठकर जुलेखा को सिर ढकने वगैरह की हिदायतें देता है, और फिर मंच के एक सिरे पर कतार से खड़े अलग-अलग ऊंचाई के छह-सात रेफ्रिजरेटर