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उकताहट और तीन औरतें

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सौरभ शुक्ला निर्देशत 'रेड हॉट' प्रसिद्ध अमेरिकी नाटककार नील साइमन का नाटक है। हिंदी में स्वयं सौरभ ने इसका रूपांतरण किया है। इसके केंद्र में एक ऐसा किरदार है जिसकी शादी को 22 साल हो चुके हैं और इस उम्र में उसे लगने लगा है कि जिंदगी बडी बोरियत भरी है, कि कहीं उसकी कोई पूछ नहीं है, कि वह व्यर्थ में ही समय बिताए जा रहा है, वगैरह वगैरह। ऐसे में अपनी जिंदगी में थोड़ी उत्तेजना लाने के लिए उसके दिमाग में विवाहेतर संबंध का आइडिया आता है। यह नाटक इसी सिलसिले में तीन अलग अलग किस्म की स्त्रियों से उसकी मुलाकात याकि मुठभेड़ की कहानी है। अपनी समूची मंचीय संरचना में प्रस्तुति लगातार काफी चुस्त है। उसकी मंच सज्जा में कहीं कोई झोल नहीं, कोई विंग्स नहीं। काफी बारीकी से फ्लैट के अंदर का दृश्य बनाया गया है, जिसमें ड्राइंगरूम से जुड़ा एक टेरेस है, जहां से झांककर नीचे गार्ड को आवाज दी जा सकती है। ड्राइंगरूम में एसी लगा है। कारपेट है। रसोई में सर्विस विंडो है, जहां से भीतर और बाहर खड़े दोनों पात्रों की बातचीत और कार्रवाइयां दर्शकों को दिखाई देती हैं। रसोई के भीतर रखे फ्रिज का थोड़ा सा हिस्सा भी दिखा

नाटक एक उत्पाद है

रंग निर्देशक सुरेंद्र शर्मा ने उसी तरह हिंदी के कई क्लासिक उपन्यासों- 'बूंद और समुद्र', 'रंगभूमि', 'मैला आंचल', 'बाणभट्ट की आत्मकथा' आदि- को रंगमंच पर पेश किया है, जिस तरह देवेंद्र राज अंकुर ने अपने 'कहानी का रंगमंच' में कहानियों को। लेकिन अंकुर की तरह उन्होंने कभी किसी शैली में बंधने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय वे उपन्यास की संवेदना और उसकी छवियों के रूपाकार पर अधिक केंद्रित रहे हैं। इधर उन्हें क्या सूझी कि उन्होंने विष्णु प्रभाकर जन्म शताब्दी के मौके पर उनकी तीन कहानियों का लगभग अंकुर शैली में मंचन किया। बीते सप्ताह भाई वीर सिंह मार्ग स्थित मुक्तधारा प्रेक्षागृह में हुई रंगसप्तक की इस प्रस्तुति में विष्णु प्रभाकर की तीन कहानियों- 'कितने जेबकतरे', 'डायन' और 'धरती अब भी घूम रही है'- में कहानियों का नाट्य रूपांतरण नहीं किया गया है। उन्हें मंच पर सुनाया जा रहा है और इस सुनाए जाने के बीच वे मानो उदाहरण के लिए घटित भी होती हैं। घटित होने का यह ढंग निहायत अनौपचारिक है। जैसे वाचन में कहानी पूरी स्पष्ट न हो रही हो, इसलिए अभिनय के